लंढौरा।
भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही भौतिक विकास की अपेक्षा आध्यात्मिक एवं मानसिक विकास पर बल दिया गया है। लेकिन दुर्भाग्य से हम अपने महान प्राचीन परंपराओं को भूलकर भौतिकवाद में फंसते जा रहे हैं। ये बातें चमन लाल महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग एवं जंतु विज्ञान विभाग द्वारा भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सहयोग से ‘समकालीन चुनौतियां और भारतीय दार्शनिक मूल्य विषय’ पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति सुधारानी पांडे ने कही। उन्होंने अपनी खोई हुई परंपराओं को फिर से पाने पर जोर दिया और कहा कि हमारी समस्याओं का हल हमारे महान ग्रंथों में छिपा है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान में हम भौतिकवाद की तरफ इस कदर बढ़ रहे हैं कि भौतिक संसाधनों को जुटाने में अपनी मानसिक शांति खोते जा रहे हैं जिस कारण हम साइकोमोटर बीमारियों से ग्रसित होते जा रहे हैं। उन्होंने खास तौर पर युवाओं का आह्वान किया कि वह भौतिकवाद के चंगुल से बचते हुए विकास की ओर अग्रसर हों। उन्होंने भौतिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक विकास पर बल दिया। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कला संकाय अध्यक्ष डॉ विनय कुमार विद्यालंकार ने भारतीय संस्कार और परंपराओं को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारी परंपराओं में समाज एवं प्रकृति से लेने की अपेक्षा समाज एवं प्रकृति को लौटाने का भाव अधिक प्रबल रहा है किंतु आज के भौतिकवादी युग में हम अपने परंपराओं एवं संस्कारों को भूलकर प्रकृति के अंधाधुंध दोहन में जुट गए हैं जिस कारण हमें विभिन्न समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। इनसे बचने का एकमात्र उपाय है कि हम खुद को महान प्राचीन भारतीय परंपराओं से जोड़ें और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ें।
महाविद्यालय प्रबंध समिति अध्यक्ष राम कुमार शर्मा ने कहा कि प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु के पद पर आसीन रहा है जिसका कारण उच्च आध्यात्मिक एवं सामाजिक मूल्य तथा वसुधैव कुटुंबकम की भावना रही है। हम अपने पुराने आदर्शों को फिर से ग्रहण करके भारत को पुनः विश्व गुरु के पद पर आसीन कर सकते हैं। उन्होंने कार्यक्रम के आयोजकों की प्रशंसा करते हुए आशा व्यक्त की कि यह कार्यक्रम हमें अपनी पुरानी जड़ों से जोड़ने में सफल होगा। प्राचार्य डॉ सुशील उपाध्याय ने कहा कि आज हम भौतिक विकास को पूरी तरह दरकिनार नहीं कर सकते क्योंकि ऐसा करके हम विश्व में पिछड़ जाएंगे लेकिन भौतिक विकास के साथ हम प्रकृति के अधिकतम दोहन की अपेक्षा सर्वोत्तम दोहन करके आने वाली पीढ़ी को एक सुरक्षित भविष्य दे सकते हैं।
कार्यक्रम का संयोजन डॉ विधि त्यागी ने किया, डॉ अपर्णा शर्मा आयोजन सचिव रही। कार्यक्रम में डॉ मीरा चौरसिया, डॉ अनीता रानी, डॉ श्वेता, डॉ दीपा अग्रवाल, डॉ रिचा चौहान, डॉ किरण शर्मा, डॉ नीतू गुप्ता, डॉ हिमांशु कुमार, श्री नवीन कुमार उपस्थित रहे।
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