श्रावण की संक्रांति पर खुले फ्यूंला नारायण के कपाट, भक्तों ने किये भगवान विष्णु के दर्शन

गोपेश्वर: समुद्रतल से एक हजार फीट की ऊंचाई हिमालयी क्षेत्र में स्थित फ्यूंला नारायण के कपाट शनिवार को श्रावण संक्रांति पर विधि विधान के साथ खुल गये हैं। इस मंदिर की एक खास विशेषता यह भी है कि यहां पर पुरुष के साथ महिला भी पुजारी होती है।चमोली जिले के जोशीमठ विकास खंड के उर्गम घाटी के हिमालय का अद्भुत विष्णु का मंदिर जहां महिला एवं पुरुष पुजारी साथ मिलकर नारायण की पूजा करते हैं। पंचम केदार श्री कल्पेश्वर धाम के शीर्ष पर एक हजार फीट की ऊंचाई पर घने जंगल के बीच में स्थित है चतुर्भुज नारायण का मंदिर। जो हर वर्ष श्रावण संक्रांति के दिन विधि विधान के साथ मंदिर के कपाट खोले जाते है।लोक मान्यताओं के अनुसार जब बद्री-केदार की पूजा एक साथ होती थी और शंकु मार्ग से बद्री पूरी पहुंचते थे पहले पंचम बद्री ध्यान बद्री के दर्शन तीर्थयात्री करते थे और बदरीनाथ धाम के रावल यहां पहुंच कर नारायण की पूजा करते थे। इसी स्थान से होकर नीलकंठ के रास्ते बद्री पुरी जाने की परंपरा रही है। जनश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है जहां से भगवती दुर्गा ने तीन सिर वाले कश्यप नामक राक्षस के तीनों सिरों को काट कर अलग-अलग स्थानों पर रखा था, जिसमें एक सर काट कर के जोशीमठ के दुर्गा मंदिर में। दूसरा सर को सिसवा ठेला नामक स्थान पर स्थापित किया और तीसरा सिर उर्गम घाटी के घंटाकरण के मंदिर में विराजमान किया था। इसी रास्ते से पहले यात्रा संपन्न होती थी। धीरे-धीरे सभ्यता का विकास होता रहा और बदी पुरी के मार्ग भी बदलते गये।यहां हर वर्ष श्रावण संक्रांति को ठाकुर परिवारों की ओर से विष्णु की पूजा की जाती रही है। शनिवार को 11.50 प्रातः कपाट खोल दिए गए हैं। वैदिक परंपरा के अनुसार पंडित प्रकाश चंद डिमरी ने वैदिक मंत्रों के साथ कपाट खुलने की परंपरा पूरी की गई। नवनियुक्त पुजारी ने पूजा अर्चना की।इस वर्ष भेंटा गांव के योगम्वर सिंह चौहान फ्यूला नारायण के पुजारी और महिला पुजारी पार्वती देवी फ्यूल्यांण के रूप में पुजारी है। श्रावण संक्रांति से लेकर नंदा अष्टमी के नवमी तिथि तक कपाट खुले रहेंगे। नवमी तिथि को वैदिक मंत्रों के साथ हवन के बाद कपाट बंद कर दिए जाएंगे। यहां नारायण की पूजा के अलावा क्षेत्रपाल घंटाकरण, भूमियाल जाख देवता, नंदा सुनंदा, वनदेवी की पूजा संपन्न की जाएगी। फ्यूंला नारायण में विशेष तौर से सत्तू और दूध का भोग लगाया जाता है। कपाट खुलने के बाद भगवान का नित्य स्नान के साथ बाल भोग राजभोग लगाया जाता है। रात्रि के समय संध्या काल में भगवान नारायण को दूध का भोग लगाया जाता है। मक्खन, घी की विशेष पूजा ही होती हैं। कपाट खुलने के अवसर काफी संख्या में यहां श्रद्धालु पहुंचे थे। नारायण फ्रेंड्स ग्रुप, मेला कमेटी भरकी, भेंटा, ग्वाणा, अरोसी, पिल्खी के ग्रामीणों की ओर से मंदिर को सजाया गया था।भरकी के पंचनाम देवताओं के मंदिर से गाय, बचछियां नारायण का भोग सामग्री लेकर के नारायण मंदिर में पहुंचे थे। पंचनाम देवता के मंदिर में पंचायत के लोगों ने नवनियुक्त महिला पुजारी को भगवान नारायण के फूल की टोकरी, मक्खन का विशेष पात्र दिया गया। पुरुष पुजारी को चिमटा और घंटी दी गई। कपाट खुलने पर प्रधान संघ के अध्यक्ष अनूप नेगी के नेतृत्व में श्रद्धालुओं के लिए विशेष भंडारा का आयोजन किया गया।इस मौके पर पंचनाम देवता के पुजारी अब्बल सिंह पंवार, मंगल सिंह चौहान, भरकी की प्रधान मंजू देवी, मेला कमेटी के अध्यक्ष हर्षवर्धन सिंह फरस्वाण, प्रीति देवी, नारायणी देवी आदि मौजूद थे।

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