पालतू सूअरों में स्वाइन फीवर को लेकर उत्तराखंड में अलर्ट जारी, बरतें ये सावधानियां

देहरादून: प्रदेश में पालतू सूअरों में स्वाइन फीवर के केस मिलने पर पशुपालन विभाग ने अलर्ट जारी किया है। पशुपालन निदेशक डॉ. प्रेम कुमार ने पशु चिकित्सा अधिकारियों को सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। साथ ही कहा कि बुखार से प्रभावित सूअर किसी दूसरे पशु के संपर्क में न आए। जिला प्रशासन से संबंधित क्षेत्रों को कंटेनमेंट जोन बनाने का अनुरोध किया जा रहा है। इससे फीवर प्रभावित पशु को एक ही क्षेत्र में रखा जा सकेगा।पशुपालन निदेशक ने बताया कि पौड़ी में 35 और देहरादून में 80 सूअरों की मौत के बाद सैंपल जांच के लिए भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली भेजे गए थे। जांच में सूअरों की मौत का कारण स्वाइन फीवर पाया गया। इसे अफ्रीकन स्वाइन फीवर भी कहा जाता है। देहरादून में भी ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं। मनुष्यों के लिए हानिकारक नहींडॉ. प्रेम ने बतायाए स्वाइन फीवर बीमारी से केवल सूअर प्रभावित होते हैं। मनुष्य के लिए यह हानिकारक नहीं है। इससे चिंतित होने की जरूरत नहीं है। हांए यह जरूर है कि बीमारी से प्रभावित सूअर से एक निश्चित दूरी रखनी चाहिए। इंसानों के लिए नुकसानदायक नहींपशुपालन निदेशक डॉ. प्रेम कुमार ने श्हिन्दुस्तानश् को बताया कि स्वाइन फीवर बीमारी के केस सामने आने के बाद विभागीय अधिकारी उन क्षेत्रों पर नजर रख रखे हुए हैं। यह बिलकुल साफ है कि यह बीमारी केवल सूअरों में ही होती है और मनुष्य के लिए यह नुकसानदायक नहीं है। जहां तक हो सके बीमार पशु को दूसरे स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए। इसके साथ कोशिश करनी चाहिए कि बीमार पशु का मांस नहीं खाया जाए।दूसरी ओर, दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एचओडी मेडिसिन डॉ. नारायण जीत सिंह ने बताया किए आमतौर पर पशुओं की बीमारियों का असर मनुष्य पर नहीं होता। उन्होंने बताया कि पशु जरूर परस्पर संक्रमित हो सकते हैं। इसलिए पशु के संक्रमित होते ही उसे तुरंत आइसोलेट कर देना चाहिए। बकौल डॉ. सिंह,यदि बीमार पशुओं का मांस खाते हैं तो थोड़ा परहेज करें। नगर निगम के वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. डीसी तिवारी के अनुसारए इस बीमारी में सूअरों में तेज बुखारए नांक.मुंह में सूजनए उल्टी-दस्त, दिमाग की नस फटने जैसे लक्षण दिखते हैं। उन्होंने लोगों से अपील की है कि यदि ऐसे लक्षण दिखें तो पशु चिकित्सालय में संपर्क करें। इसका इलाज नहीं हैए इसमें बीमार सूअर को मार दिया जाता है। उन्होंने बताया कि यदि किसी सूअर की मौत होती है तो उसे खुले में ना फेंककर दफना दिया जाए।स्वाइन फीवर की खोज 1921 में अफ्रीकी देश केन्या में हुई थी। यह घरेलू और जंगली सूअरों में बेहद संक्रामक रोग है। इससे सूअरों की कुछ घंटे में मौत हो जाती है। सूअर को तेज बुखार, लड़खड़ाकर चलना और सफेद सूअर के शरीर पर चकते होना, खाना-पीना छोड़ देना आदि इस बीमातरी के लक्षण हैं। इस बीमारी में मृत्यु दर शत-प्रतिशत हैशहर में सूअरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर फैल गया। अब तक इस बीमारी से 80 से ज्यादा सूअरों की मौत हो चुकी है। नगर निगम ने रोकथाम को दो टीमें बना दी हैं। पहले दिन सूअरों के मांस की दुकानें बंद करवाई गईं। 80 किलो मांस भी नष्ट करवाया। पशुपालन विभाग ने सूअर के ब्लड सैंपल भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली भेजे थे। नगर निगम के वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉण् डीसी तिवारी ने बतायाए जांच में स्वाइन फीवर की पुष्टि हुई। बरतें एहतियात संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशु से दूर रखें। ऐसे पशु का मांस खाने से परहेज रखें। यदि मांस खा ही रहे हैं तो अच्छे से पका-उबाल कर ही खाएं। बीमार पशु के आवास में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए।

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